असल न्यूज़: इस्लाम धर्म का पाक महीना रमजान अब खत्म होने को है. दुनिया भर में कुछ देशों में ईद-उल-फितर 10 अप्रैल दिन बुधवार और कुछ देशों में 11 अप्रैल दिन गुरुवार को मनाई जाती है. ईद के मौके पर जब तक सेवई न खाई जाए तब तक ये त्योहार अधूरा माना जाता है. ईद-उल-फितर के दिन सेवई खाने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेवई के बिना ईद का त्योहार क्यों अधूरा है और इसकी परंपरा कैसे शुरू हुई. आइए जानते हैं-
ईद उल फितर इस्लामिक धर्म का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार होता है जो रमजान के अंत का प्रतीक है. इस त्योहार पर सेवई का बहुत महत्त्व होता है. सेवई उबले दूध के साथ मिश्रित करके बनाई जाने वाली एक मिठाई होती है. जो इस्लामिक संस्कृति में बहुत अहम है. ईद पर बनने वाली सेवई को लोग घरों में परिवार और दोस्तों के साथ बांटते हैं जिससे त्योहार का जश्न और खुशियां बढ़ती हैं. सेवई की मिठाई बनाने की यह परंपरा ईद उल फितर से ही शुरू हुई थी. इस मिठाई को मुस्लिम में शीर खोरमा कहा जाता है.
फारसी भाषा में शीर का मतलब दूध और खुरमा का मतलब खजूर होता है. ये एक ऐसी रेसिपी है जो भारत के लगभग हर मुस्लिम घर में तैयार की जाती है और ईद-उल-फितर के दिन लोग खाते हैं और एक दूसरें को गले मिलकर बधाई देते हैं.
ऐसे हुई ईद पर सेवई खाने की परंपरा
इस्लाम धर्म में ईद मनाने के पीछे दो बड़ी वजह बताई जाती है. पहली यह कि जंग-ए बदर में मुसलमानों ने पहली जीत हासिल की थी. यह जंग 2 हिजरी 17 रमजान के दिन हुई थी. यह इस्लाम की पहली जंग थी. इस लड़ाई में 313 निहत्थे मुसलमान थे, वहीं दूसरी तरफ तलवारों और हथियारों से लैस दुश्मन फौजों की संख्या 1000 से ज्यादा थी. इस जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अगुवाई में मुसलमान बहुत ही बहादुरी से लड़े थे और जीत हासिल की थी.
इसी जीत की खुशी में सेवई से बनी मिठाई बांटी गई और एक दूसरे को मिलकर मुबारकबाद दी गई. बस तभी से ईद पर सेवई से बनी मिठाई शीर खोरमा खाने की परंपरा चली आ रही है. इसलिए सेवई के बिना ईद का त्योहार अधूरा माना जाता है. वहीं ईद मनाने की दूसरी बड़ी वजह यह है कि 30 दिन मुसलमान रोजे रखते हैं रात को इबादत करते हैं. ऐसे में यह अल्लाह की तरफ से मिलने वाला इनाम है. एक महीने के रोजे रखने के बाद मुसलमान ईद पर अच्छे पकवान बनते हैं. एक दूसरें के साथ मिलकर खुशियां बांटते हैं.