Wednesday, January 22, 2025
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महाकुंभ में धर्म, अध्यात्म, संस्कृतियों का संगम देखकर हर कोई कहेगा भारत को सोने की चिड़िया

असल न्यूज़: भारत देश के नामकरण में धर्म और अध्यात्म का मूल आधार रहा है जैसे सूर्य के चारों ओर ग्रह, नक्षत्र, घूम रहे हैं जिसे एक ब्रह्माण्ड कहते हैं उसी प्रकार उस अनन्त शक्ति, परमात्मा के चारों ओर अनेक ब्रह्माण्ड चक्कर लगा रहे हैं, उसमें भारत का स्थान उस अनन्त शक्ति के ठीक सामने पड़ता है। यों तो ईश्वरीय रूपी अनन्त शक्ति का प्रकाश सभी स्थानों पर पड़ता है पर इस देश पर प्रकाश सीधे आता है इसलिए यह देश संतों की भूमि, धर्म, कर्म प्रधान है। ऋषि-महर्षियों ने धर्म के रूप में इसी तत्व को प्रमाणित किया है और इस देश को धर्म प्रधान देश कहा है, यह धर्म सम्प्रदाय का धर्म नहीं, भगवान का वह प्रकाश है जिसे पाकर कोई भी व्यक्ति, जाति या देश धन्य हो जाता है। यह प्रकाश पैदा नहीं किया जाता स्वाभाविक ही होता है, यह यहां का जन्मजात धर्म है, प्रकाश है, इसलिए भारत महान है।

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साहित्य में भारत का अर्थ भा (प्रकाश) + रत होता है। पौराणिक संदर्भ में भारत देश के नामकरण का श्रेय कुरुवंशी राजा दुष्यंत के पुत्र तथा ऋषि विश्वामित्र के नाती सम्राट भरत को दिया जाता है। समानान्तर जैन साहित्य में भारत के नामकरण का श्रेय प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत को दिया जाता है। इतिहास में भरत नाम के दो अन्य विख्यात राजा भी हुए हैं, इनमें से एक राजा भगवान राम के पूर्वज थे

तो दूसरे राजा स्वयं राम के भाई भरत थे। राम के पूर्वज का नाम महाबाहु शत्रुसूदन भरत था (वाल्मीकि रामायण) और राम के भाई भरत को चौदह वर्षों के लिए राजा बनाया गया था। भारत का एक नाम हिंद भी विश्व प्रसिद्ध है जो सिंधु (सागर अथवा नदी) शब्द से निकला है। देश प्रेम, देश सेवा के अनेक पहलू हैं। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जब लक्ष्मण सहित लंका में युद्ध के लिए प्रवेश करते हैं तो अनायास उनके मुख से निकलता है,

अर्थात् हे लक्ष्मण! यह स्वर्ण की नगरी लंका मुझे रुचिकर प्रतीत नहीं होती, अपनी जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। कलियुग में स्वर्ग को देखना हो तो नए साल में महाकुम्भ के अवसर पर तीर्थराज प्रयागराज जरूर आऐं।

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