असाल न्यूज़: क्राइम ब्रांच ने नकली दवा के इस पूरे सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया है। छह आरोपी गिरफ्तार किए हैं। दो फैक्ट्रियां, नामी कंपनियों की करीब 150 किग्रा नकली टैबलेट और 20 kg कैप्सूल रिकवर किए हैं। DCP (क्राइम) हर्ष इंदौरा ने बताया कि एंटी गैंग स्क्वॉड (AGS) में तैनात हेड कॉन्स्टेबल जितेंदर को नकली दवा की खेप के दिल्ली आने की सूचना मिली। ACP भगवती प्रसाद की देखरेख में इंस्पेक्टर पवन कुमार की टीम बनाई गई। सिविल लाइंस के शामनाथ मार्ग पर यूपी नंबर की कार को रोका गया। यूपी के मुरादाबाद निवासी दो भाई मोहम्मद आलम और मोहम्मद सलीम को नकली दवा की खेप के साथ पकड़ा। लैब टेस्ट में नकली होने की पुष्टि हो गई।
हवाला के जरिए होता था करोड़ों का लेन देन
नामी कंपनियों जॉनसन एंड जॉनसन, जीएसके और अल्केम की नकली दवाएं बनाई जा रही थीं। अल्ट्रासेट, ऑगमेंटिन, पेरासिटामोल, जीरोडोल एसपी, पैटॉप डीएसआर, केनाकोर्ट इंजेक्शन समेत कई दवाएं हैं। आरोपी सलीम और आलम ने बताया कि नकली दवा की खेप यूपी के महाराजगंज निवासी अरुण, करनाल के कोमल और गोरखपुर के सुमित समेत कई सप्लायरों से मिलती थीं। इस पूरे सिंडिकेट का मास्टरमाइंड राजेश मिश्रा है।
क्यों नहीं रुक रही नकली दवाओं की बिक्री?
दिल्ली में नकली दवाओं का कारोबार अब संगठित रूप लेता जा रहा है। पिछले तीन महीनों में नकली दवाओं की बिक्री से जुड़े तीन बड़े मामले सामने आ चुके है। नकली दवाएं पकड़ने के लिए कड़ी निगरानी, सख्त एक्शन और विभिन्न एजेंसियो के आपसी तालमेल की दरकार है, लेकिन इसमें कई स्तरों पर कमी के चलते नकली दवाओं का कारोबार फलफूल रहा है। उद्योग संगठन एसोचैम ने 2022 में जारी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत में घरेलू बाजार में उपलब्ध एक चौथाई दवाएं नकली हैं।
हरियाणा के जींद में पकड़ी फैक्ट्री
सरगना राजेश मिश्रा ने जींद में नकली दवा बनाने की फैक्ट्री खोली थी। वह नेहा शर्मा और पंकज शर्मा से प्रतिष्ठित ब्रेड से मिलते-जुलते खाली पैकेजिंग बॉक्स लेता था। ब्लिस्टर पैकिंग में काम आने वाली पन्नी और डाई गोविंद मिश्रा के माध्यम से हिमाचल के बद्दी से खरीदता था। नकली दवा की खेप को रेलवे के जरिए गोरखपुर भेजा जाता था। प्रेम शंकर सरीखे ऑपरेटरों के जरिए दवा को ग्रासरूट पर आलम और सलीम जैसे ग्राउंड लेवल के डीलरों को बांटा जाता था।
सोशल मीडिया के जरिए बिक्री
नकली दवा बेचने के लिए शुरुआती संपर्क अक्सर फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए किया जाता था। किसी भी तरह के संदेह से बचने के लिए आरोपी नियमित कूरियर या प्राइवेट गाड़ियों से माल की सप्लाई करते थे।
हवाला से लेन-देन का खुलासा
पुलिस अफसरों ने बताया कि आरोपी मोबाइल वॉलेट और बारकोड के जरिए पैसे का भुगतान करते थे। अपने रिश्तेदारों के बैंक खातों का भी इस्तेमाल करते थे। जांच में हवाला के जरिए भी मोटी रकम की आवाजाही का भी खुलासा हुआ है।
आरोपियों के काम अपने-अपने
राजेश मिश्रा (52): गोरखपुर का यह शख्स सिंडिकेट का मास्टरमाइंड है। नकली दवा बनाने, पैकेजिंग सामग्री और डाई की सप्लाई, तालमेल और बेनामी बैंक अकाउंट के जरिए भुगतान करने के पीछे इसका दिमाग था।
प्रेम शंकर प्रजापति (25): यूपी के देवरिया निवासी यह शख्स मुख्य मीडिएटर और ट्रांसपोर्टर का काम करता था। दवा को फैक्ट्री से सप्लायर तक पहुंचाता था।
परमानंद (50): जीद में लक्ष्मी मां फार्मा नाम की फैक्ट्री का मालिक, वहां नकली दवा बनाकर बद्दी से असली दिखने वाली पैकेजिंग और पन्नी में पैक करवाता था।
मोहम्मद जुबैर (29): यह सलीम और आलम को नकली दवा की सप्लाई करता था। वट्सऐप चैट और फाइनैशयल ट्रांजैक्शन के जरिए रैकेट में इसकी जड़ें काफी गहरी पाई गई।
सलीम (42) और आलम (35): मुरानाबाद निवासी दोनों भाई दिल्ली-एनसीआर में नकली दवा की कार के जरिए ट्रांसपोर्टिंग में अहम भूमिका निभाते थे।