असल न्यूज़: सावन महीने में शिव भक्त एक यात्रा पर निकलते हैं, जिसे कांवड़ यात्रा कहा जाता है. माना जाता है शिव को प्रसन्न करके मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए लोग कावड़ लेकर शिव धाम जाते हैं. माता पार्वती और पिता शिव को कंधे पर लेकर चलने का भाव ही कांवड़ यात्रा है. श्रावण मास के दौरान लाखों की संख्या में शिवभक्त भोले बाबा का जयकारा लगाते हुए का धूमधाम के साथ हरिद्वार, गंगोत्री सहित अन्य कई शिव धाम की यात्रा के लिए निकल पड़ते है. कांवड़ यात्रा 28 दिनों की होती है. सावन के पहले दिन से लेकर सावन के अंतिम दिन तक यह यात्रा चलती रहती है.
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कांवड़ का अर्थ “कंधों पर रखा हुआ” होता है. लकड़ी की एक डंडी जिसके दोनों सिरों पर एक-एक पात्र रहता है, जिसे लोग कंधे पर रखकर पहले गंगा नदी पहुंचते है और वहां से जल लेने के बाद किसी भी शिवधाम पर पहुंचकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. गंगा प्रिय होने के कारण भगवान भोलेनाथ ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया है, इसलिए शिव को प्रसन्न करने के लिए लोग उनका गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं.