असल न्यूज़: दिल्ली का AQI शाम 475 दर्ज हुआ। यह कितने सीवियर स्टेज में है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक्यूआई 450 स्तर पर पहुंचने के बाद हेल्थ इमरजेंसी बताई जाती है। दिल्लीवाले ऐसी स्थिति में जी रहे हैं और हर एक सांस में इन प्रदूषित कण लेने को मजबूर हैं। PM 2.5 का इफेक्ट स्मोकिंग की तरह है। शिकागो की स्टडी के अनुसार, भारतीयों की जिंदगी पल्यूशन की वजह से औसतन 5.3 साल कम हो जाती है, लेकिन दिल्लीवालों की औसत उम्र में 11.9 साल की कमी हो रही है। एक्सपर्ट का कहना है कि दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। दिल्ली में सालाना औसत प्रदूषित कण WHO के निर्धारित मानकों से 25 गुना अधिक हैं।
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पीएसआरआई हॉस्पिटल के लंग्स स्पेशलिस्ट डॉक्टर जी सी खिलनानी ने कहा कि मैं ऐसे कई मरीजों को देखता हूं, जिन्हें मामूली वायरल इन्फेक्शन के बाद लंबे समय तक खांसी, सांस फूलना और घरघराहट की समस्या होती है। कई बार इन्हें कंट्रोल करने के लिए स्टेरॉयड की जरूरत होती है। एयर पल्यूशन और वायरल इन्फेक्शन के कारण मृत्यु दर बढ़ने का एक उदाहरण उत्तरी इटली में देखा गया, जहां कम प्रदूषित दक्षिणी इटली के मुकाबले मृत्यु दर तीन गुना ज्यादा थी।
इन देशों ने निकाला सॉल्यूशन
1952 में लंदन में स्मॉग से 12,000 लोगों की मौत हुई, जिसका मुख्य कारण औद्योगिकीकरण (खासकर कोयला जलाना) की वजह से एयर क्वॉलिटी का खराब होना था। तब से विकसित देशों ने इस समस्या को गंभीरता से लिया और आज स्थिति ऐसी है कि एयर पल्यूशन से होने वाली बीमारियों और मौत का बड़ा हिस्सा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में है।
एक समय कैलिफोर्निया भी दिल्ली जितनी प्रदूषित थी, लेकिन सख्त नियमों के कारण, अब PM 2.5 का स्तर लगभग 10 पर आ गया है, जबकि गाड़ियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। अमेरिका में क्लीन एयर एक्ट लागू होने के बाद प्रदूषण 64.9% कम हुआ। चीन ने भी 2013 के बाद वायु प्रदूषण को 43.3% तक कम किया, जिससे उनकी लाइफ में 2.2 साल की वृद्धि हुई। भारत में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण ऑटोमोबाइल वाहन, उद्योग (खासकर छोटे उद्योग) धड़ल्ले से चल रहे कंस्ट्रक्शन वर्क हैं। ये सभी इंसानों की एक्टिविटीज से जुड़े हैं, इसलिए कड़े नियमों और उपायों के जरिए ही इसे कम करना संभव है।
मास्क कुछ हद तक ही कारगर
डॉक्टर खिलनानी ने कहा कि 30 साल पहले घरों में नेबुलाइजेशन मशीन रेयर थी, लेकिन अब दिल्ली के हर घर में, खासकर बच्चों और बुजुर्गों वाले घरों में, यह आम बात हो गई है। यह बताना जरूरी है कि एयर प्यूरीफायर या मास्क के इस्तेमाल से एयर पल्यूशन के साइड इफेक्ट्स से बचने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
गंगाराम अस्पताल के रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर बॉबी भलोत्रा का कहना है कि साधारण मास्क कारगर नहीं हैं। लेकिन, एन 99 और एन 95 कुछ हद तक कारगर हैं। इस मास्क का इस्तेमाल कर लोग बाहर निकल सकते हैं। लेकिन यह भी पूरी तरह से पल्यूशन से नहीं बचाता है। अगर रनिंग करते हैं, जॉगिंग करते हैं या साइकलिंग करते हैं तो उस समय मास्क नहीं पहनें, इससे दिक्कत हो सकती है।
जितनी लंबी सांस, उतना ज्यादा पल्यूशन
बीएलके हॉस्पिटल के रेस्पिरटेरी एक्सपर्ट डॉ़ संदीप नय्यर ने कहा कि लोगों ने मॉर्निंग वॉक तक करना बंद कर दिया है। बतौर डॉक्टर हम भी सभी से ऐसा ही करने की सलाह दे रहे हैं। आप जितना चलेंगे, जितना तेज चलेंगे, उतनी ज्यादा सांस लेंगे। जितनी ज्यादा सांस लेंगे, उतना ही पल्यूशन अंदर जाएगा। इसलिए एक्टिविटी न करें तो बेहतर है।
कोई भी स्तर सुरक्षित नहीं
डॉक्टर खिलनानी ने कहा कि मेरा विश्वास है कि एयर पल्यूशन का कोई भी स्तर सुरक्षित नहीं है। यही कारण है कि WHO ने PM 2.5 के लिए एयर क्वॉलिटी मानक घटाकर 5 ug/m3 कर दिया है, जबकि भारत का मानक 40 ug/m3 है। सरकार द्वारा तय किए गए नियमों का पालन करना जरूरी है। हम सभी भारतीय नागरिकों की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि इस समस्या को नियंत्रित करें।
धूल, धुएं और पल्यूशन के इफेक्ट
धूल और धुआं: ये दो कारण हैं कि जिसकी वजह से ऐसी स्थिति बन रही है। इन दोनों को रोकना होगा।
धुआं: धुआं गाड़ी से निकले, फैक्ट्री से निकले, सिगरेट से या फिर दूसरी वजह से। इसकी वजह से पार्टिकुलेट मैटर और गैस हवा में पहुंचती है।
धूल: सड़क किनारे मिट्टी, कंस्ट्रक्शन, खेत-खलिहान से निकलता है, इसमें पीएम 10 और पीएम 2.5 दोनों होते हैं।
PM 10 : यह कण गले, आंख, नाक को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं।
PM 2.5 : यह इतने छोटे कण होते हैं कि नाक के जरिए लंग्स तक पहुंच जाते हैं। खून में जाते हैं। जो लोग एलर्जिक हैं, उनके शरीर में पार्टिकुलेट मैटर के साथ रिएक्शन होता है। सांस की नली में सूजन आ जाती है। सांस की तकलीफ बढ़ जाती है। सूजन को कम करने के लिए नेबुलाइजर, स्टेरॉयड का इस्तेमाल करना पड़ता है।
क्या कर सकते हैं लोग
ज्यादा से ज्यादा घरों में रहें, बाहर कम निकलें
घरों में एयर प्यूरिफायर लगाएं
बाहर निकलें तो N-95 मास्क पहनें, सर्जिकल और कपड़े का मास्क काम नहीं करता
फ्लू की वैक्सीन हर साल सितंबर-अक्टूबर में लगवाएं
निमोनिया से बचने के लिए हर किसी को निमोकोकल वैक्सीनेशन कराना चाहिए
घरों के अंदर प्लांट लगाएं, जो हवा साफ करती हो
दवा खाते रहें, दवा बंद न करें
दिक्कत हो तो डॉक्टर से सलाह लें
दवा की डोज बढ़ाने पर भी दिक्कत कम नहीं हो रही है तो एडमिशन की जरूरत है
कैसे करें बचाव
- घर में गीला पोछा लगाते रहें, कमरे की खिड़कियां बंद रखें, लेकिन वेंटिलेशन भी अच्छा रखें
- वाइट वॉश कराने से भी बचें। कोशिश करें कि अभी घर के अंदर कंस्ट्रक्शन जैसा कोई काम न हो
- घर के अंदर कोई भी चीज जलाने से बचें। मसलन लकड़ी, मोमबत्ती और यहां तक कि अगरबत्ती भी नहीं
- घर के अंदर पौधे लगाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ये घरों के अंदर ऑक्सिजन का अनुपात बढ़ाते हैं
- मनी प्लांट लगाएं, यह आसानी से इनडोर में जिंदा रहता है
- एरिका पाम प्लांट हवा को फिल्टर कर साफ बनाने में मददगार है।
- अस्थमा वाले इनहेलर को न भूलें, अगर संभव हो तो बाथरूम में भी लेकर जाएं
- एलोवेरा में कई औषधीय गुण होते हैं, यह घर के अंदर की हवा को साफ बनाता है
- बिना मास्क घर से नहीं निकलें, मास्क आपको प्रदूषित हवा और कोविड वायरस दोनों से बचाएगा
- अगर सूर्य की रोशनी नहीं हो और आसमान में कोहरा हो तो सुबह की सैर पर नहीं जाएं