असल न्यूज़: सद्गुरु जग्गी वासुदेव की स्कूल के दिनों में एक अजीब आदत थी. वह आधी रात को मुस्लिम कब्रिस्तान पहुंच जाते और वहां घंटों-घंटों तक बैठे रहते और शव दफन होते देखते. अरुंधति सुब्रमण्यम, पेंगुइन से प्रकाशित सद्गुरु की जीवनी ‘युगन युगन योगी: सद्गुरु की महायात्रा’ में लिखती हैं कि जग्गी की इस अजीब आदत की जानकारी उसके परिवार और दोस्तों को भी नहीं थी. वह आधी रात को अक्सर अपने घर से चुपके से खिसक जाते और मैसूर के स्थानीय कब्रिस्तान में पहुंच जाते.
कभी-कभी अपने पेट डॉग रूबी, को घुमाने के बहाने चुपके से श्मशान पहुंच जाते. स्कूल के दिनों से उनकी आत्माओं में खासी दिलचस्पी थी. उनके मन में मरने की प्रक्रिया को जानने की उत्सुकता थी. वह जली हुई लाशों, खोपड़ियों, शरीर से अलग हो चुके अंगों और अंतिम संस्कार के डरावने मलबे को घंटों देखते रहते.
चिता से उठा लेते थे हड्डी
अरुंधति लिखती हैं सद्गुरु अंतिम संस्कार में शोक प्रकट करने आए लोगों के जाने का इंतजार करते और चुपचाप लाश को जलते देखते. जब सब चले जाते तो कभी-कभी दाह-संस्कार के बाद अलग हुए अंग को उठाकर करीब से देखते और फिर सुलगती चिता पर वापस फेंक देते. सद्गुरु जब वह नौंवीं कक्षा में थे, तब स्कूल की छुट्टियों के दौरान सुचरिता नाम की उनकी एक सहपाठी की निमोनिया से मौत हो गई. शुरुआत में तो सहपाठियों को इस बारे में पता नहीं था.
दोस्त की मौत से बेचैन हो उठे
सुचरिता दशहरे की छुट्टियों के बाद स्कूल नहीं लौटी. टीचर द्वारा उसका नाम पुकारे जाने पर, जग्गी और उसके दोस्त उसकी आवाज़ की नकल करके उसकी हाज़िरी लगवा दिया करते थे. जब 20 दिनों बाद उनको पता चला कि सुचरिता का देहांत हो चुका है तो जग्गी को बड़े हैरान हुए. वह जानने चाहते थे कि आखिर क्लास में इतने वर्ष उनके साथ बैठने वाली उस लड़की के साथ हुआ क्या? सुचरिता के भाई से उसे मालूम हुआ कि अपने अंतिम दिनों में बेहोशी के दौरान वह अक्सर ‘जग्गी’ नाम लिया करती थी. इससे वह और बेचैन हो गए.
एक साथ गटक गए 98 गोलियां
सुचरिता को वाकई क्या हुआ था? वह कहां गायब हो गई? अब कहां है? यह पता लगाने के लिए सद्गुरु ने अजीब तरकीब निकाली. अपने पिताजी के दवाखाने से गार्डिनल-सोडियम की 98 गोलियां चुरा लीं. एक रात खाना नहीं खाया, और वो सारी गोलियां एक साथ गटक गए. फिर इंतज़ार करने लगे कि देखें, आगे क्या होता है? आखिर मौत के बाद होता क्या है, इंसान जाता कहां है? 3 दिन बेहोश पड़े रहे और तीसरे दिन अपने पिता के अस्पताल में नींद खुली.
किसी तरह बची थी जान
अरुंधति लिखती हैं कि इतनी सारी गोलियां खाने के बाद जग्गी की तबीयत बिगड़ गई. घरवाले उन्हें आनन-फानन में अस्पताल ले गए. वहां पेट की धुलाई हुई. होश में आने के बाद जब माता-पिता ने पूछा तो जग्गी ने बुदबुदाते हुए कहा कि उसने गलती से नागफनी का फल खा लिया था. किसी को कभी भी सच का पता नहीं चला. अरुंधति सुब्रमण्यम लिखती हैं कि जग्गी के लिए खीझने वाली बात यह थी कि उन्हें मौत के बारे में भी कुछ भी पता नहीं चल पाया.