असल न्यूज़: सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है. इस दिन व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उनकी कृपा से जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि आती है. शिव भक्तों का मानना है कि इस व्रत को करने से शिवजी की विशेष अनुकंपा मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सोमवार व्रत का हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व है. श्रद्धा, भक्ति, और सच्चे मन से इस व्रत को करने वाले जातक की प्रभु हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. सोमवार व्रत का पालन करने से विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण होता है. आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है.
सोमवार व्रत कथा (somvar vrat katha in hindi)
एक दिन भगवान शिव शंकर भ्रमण के लिए जा रहे थे तब माता पार्वती बोली मैं भी आपके साथ चलूँगी तब भोलेनाथ ने कहा देवी आप मेरे साथ मत चलिए, आपको भूख और प्यास लगेंगी. तब पार्वती जी ने कहा नहीं महाराज मैं भी चलूँगी रास्ते में पार्वती जी को भूख लगने लगी. उन्होंने भोले नाक से कहा हे महादेव मुझे खीर खांड का भोजन चाहिए. तब शिव शंकर भगवान बोले मैंने तो आपसे पहले ही कहा था की आप मत चलिए. तब भगवान शिव शंकर और माता पार्वती वेश बदलकर एक गांव में गये. चलते चलते वह एक साहूकार के घर पहुंच गये, तब साहूकार ने बोली महाराज आपको क्या चाहिए? तब ब्राह्मण वेशधारी भगवान शिव शंकर बोले. खीर खांड का भोजन चाहिए. इस पर साहूकारनी ने कहा अगर खीर खांड के भोजन चाहिए थे, तो अपने घर में क्यों नहीं रहे? साहूकारनी का उत्तर सुनकर वह दोनों आगे चल दिए.
उन्हें एक बुढ़िया मिली और बोली, आव महाराज बैठो, आपको क्या चाहिए, तब ब्राह्मण के वेश में भगवान शिव शंकर बोले मेरी पत्नी को खीर खांड का भोजन चाहिए. बुढ़िया ने कहा महाराज मैं अभी लाई, फिर वह एक लोटा लेकर चल दी. तब ब्राह्मण ने कहा बुढ़िया मां कहां जा रही हो? वह बोली मैं दूध, चावल और खांड लेनी जा रही हूं. तब ब्राह्मण ने कहा, बुढ़िया मां अपने घर में देख दूध के टोकने भरे हुए हैं, चावल की परांत भरी है और खांड की बोरी भी है. फिर बुढ़िया घर के अंदर गई और उसने देखा कि दूध, चावल और खांड सब कुछ है.
उसने खुशी खुशी खीर बनाई और भगवान शिव शंकर और माता पार्वती को जीमा दिया. उनके खाने के बाद बुढ़िया ने कहा मैं इस बची हुई खीर का क्या करूं? मेरा तो कोई भी नहीं है, तब ब्राह्मण बोले बुढ़िया मां आंखें बंद करो, बुढ़िया ने आंखें बन्द कर लीं, फिर उन्होंने कहा अब आंखें खोल लो. बुढ़िया ने आंख खोलकर देखा तो उसका पूरा परिवार हो गया. अब बुढ़िया बोली महाराज मैं इन्हें कहां रखूं? तब ब्राह्मण वेशधारी भगवान ने झोंपड़ी को लात मारी और वह झोंपड़ी महल बन गई.
यह देखकर बुढ़िया बहुत खुश हुई और वह खीर के कटोरे भर भर के बांटने लगी. जब वह खीर देनी साहूकारनी के घर गई तो साहूकारनी बोली तेरे घर में खीर कहां से आई, तब बूढ़िया ने कहा मेरे यहां खीर खांड का भोजन करने एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी आए थे. उन्हीं के प्रताप से यह सब हुआ है. तब साहूकारनी ने कहा मेरा धन तेरे घर कैसे आ गया. मेरे पास तो कुछ भी नहीं रहा. कहां हैं वह ब्राह्मण और ब्राह्मणी? तब बुढ़िया मां ने कहा वह दोनों अभी मेरे घर से निकले हैं.
साहूकारनी भागी भागी उनको ढूंढने लगी. रास्ते में उसने उन दोनों ब्राह्मण और ब्राह्मणी को देखा और बोली मोड़ा मोड़ी, ठहरियों मेरा धन उस बुढ़िया को क्यों दे गए? तब ब्राह्मण वेशधारी महादेव बोले तुने ना करी, तेरे ना हो गई, उसने हां करी उसके यहां हां हो गई. मैंने तो ना तेरा उठाया और ना ही किसी को दिया.
साहूकारनी ने ब्राह्मण और ब्राह्मणी के पैर पकड़ लिए और बोली महाराज मेरी गलती माफ़ करो, मुझे कुछ तो दे दो. साहूकारनी के इतना कहते ही ब्राह्मण और ब्राह्मणी बने हुए भगवान और माता पार्वती अपने असली वेश में आ गए और बोले. ले तेरे घी लड़ी में घी रहेगा, तेलड़ी में तेल रहेगा काम तेरा रुके ना और तेरा जुड़े ना इतना कहकर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती अंतर ध्यान हो गए.