Thursday, November 21, 2024
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वो ओलंपिक जिसमें 11 खिलाड़ियों का हुआ कत्ल, फिर खुफिया एजेंसी ने कैसे चुन-चुनकर लिया बदला?

असल न्यूज़: साल 1972 का म्यूनिख ओलंपिक. जर्मनी की सड़कें रौशनी में नहाई थीं. हर तरफ चमक-दमक बिखरी थी. जर्मनी इस समर ओलंपिक के आयोजन के जरिए दिखाना चाहता था कि अब वह हिटलर की छाया से पूरी तरह आजाद हो चुका है. हालांकि इस ओलंपिक में कुछ ऐसा हुआ, जिसे याद कर आज भी रूह कांप जाती है.

देखें वीडियो-

क्या हुआ था म्यूनिख ओलंपिक में?
म्यूनिख ओलंपिक का खेल गांव खिलाड़ियों से गुलजार था. जश्न और खुशी का माहौल था. 5 सितंबर 1972 की रात फिलिस्तीन के 8 आतंकवादी ओलंपिक खेल गांव की तरफ बढ़े. उनके कंधे पर भारी भरकम स्पोर्ट्स बैग और हाथ में चमचमाती कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलें थी. इन आतंकियों के ग्रुप का नाम था ‘ब्लैक सेप्टेम्बर’. तड़के करीब 4 बजे से आतंकी खेल गांव की चारदीवारी के पास पहुंचे और 8 फीट ऊंची दीवार फांदकर खेल गांव में दाखिल हो गए. उस वक्त कुछ अमेरिकी एथलीट रात भर पार्टी करने के बाद अपने फ्लैट की तरफ लौट रहे थे. ज्यादातर नशे में धुत थे, इसलिए किसी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया.

इजरायली एथलीट निशाने पर
आतंकवादी दनदनाते हुए उस तरफ बढ़े जहां इजरायली एथलीट्स के फ्लैट थे. वे गहरी नींद में सो रहे थे. आतंकियों ने पहले मास्टर की से हॉल का दरवाजा खोला और फिर फ्लैट का गेट तोड़ना शुरू कर दिया. इस बीच इजरायली कुश्ती टीम के रेफरी योसेफ गटफ्रायंड की नींद खुल गई. उन्होंने दरवाजे की तरफ निगाह डाली तो सुराख से एक शख़्स के हाथ में कलाश्निकोव दिखाई पड़ी. योसेफ तुरंत समझ गए कि कुछ गड़बड़ है और चिल्लाते हुए दूसरे एथलीट को आगाह किया.

6 फीट 3 इंच लंबे और 140 किलो वजनी योसेफ दरवाजे के पीछे पूरी ताकत लगाकर खड़े हो गए और आतंकियों को रोकने की कोशिश की. करीब 10 सेकंड बाद आतंकी दरवाजा तोड़ने में कामयाब रहे और सबसे पहले योसेफ को पकड़ लिया. इसके बाद वहां जो दूसरे एथलीट थे उनको बंदूक की बट मार कर जमीन पर गिरा दिया.

कैसे मिली पुलिस को खबर?
इसके बाद आतंकवादी दूसरे फ्लैट्स की तरफ बढ़े, जिनमें इजरायली एथलीट ठहरे थे. करीब 25 मिनट बीतते-बीतते फिलिस्तीन आतंकियों ने दो इजरायली एथलीट को जान से मार दिया और दो एथलीट भागने में सफल रहे. 9 एथलीट्स को बंदी बना लिया. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जो दो इजरायली एथलीट वहां से बचकर भागने में सफल हुए थे, उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया. चंद मिनट के अंदर जर्मन पुलिस खेल गांव में पहुंच गई.

आतंकियों ने क्या डिमांड रखी थी?
पुलिस ने बातचीत शुरू की. इस बीच एक आतंकवादी ने बालकनी से एक कागज नीचे फेंका, जिसमें अंग्रेजी में उनकी मांग लिखी हुई थी. सबसे पहली डिमांड थी कि इजरायल और जर्मनी के जेल में बंद उनके 234 साथियों को तुरंत रिहा किया जाए और उनको सुरक्षित जगह ले जाने के लिए प्लेन का इंतजाम किया जाए. इसके लिए सुबह 9:00 तक की डेडलाइन रखी गई. जर्मनी के चांसलर ने इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को फोन मिलाया और उन्हें चरमपंथियों की डिमांड के बारे में बताया, लेकिन वह ऐसी कोई मांग मानने के लिए तैयार नहीं हुईं.

जर्मनी ने खुद बंधकों को छुड़ाने का प्लान बनाया
इसके बाद जर्मनी की सरकार ने खुद बंधकों को छुड़ाने का प्लान बनाया. आतंकवादियों को अपना जहाज देने को तैयार हो गई. तय किया गया कि जब आतंकवादी इजरायली बंधकों को लेकर मिस्र के लिए रवाना होंगे, उसी समय जर्मन कमांडो उन्हें छुड़ा लेंगे. हालांकि जर्मनी यह प्लान बुरी तरह फेल हो गया. आतंकवादी जब हेलीकॉप्टर से बंधकों को लेकर एयरपोर्ट पहुंचे तो उन्हें खबर लग गई कि उन्हें मिस्र ले जाने के लिए जो विमान खड़ा है, उसमें पायलट तक नहीं है. उन्हें लगा कि अब उनका आखिरी समय नजदीक आ गया है और उन्होंने उस हेलीकॉप्टर में ग्रेनेड फेंक दिया, जिसमें बंधक थे. देखते ही देखते हेलीकॉप्टर आग का गोला बन गया और सारे 9 इजरायली एथलीट्स की जान चली गई.

इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के चीफ ज्वी जमीर एयरपोर्ट की बिल्डिंग से पूरी घटना देख रहे थे. वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा. उन्होंने प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को फोन मिलाया और कहा मेरे पास बहुत बुरी खबर है. मायर के हाथ से फोन छूटकर नीचे गिर गया.

यहीं से ‘असली’ मोसाद का जन्म
म्यूनिख ओलंपिक (Munich Summer Olympics) में इस तरह अपने खिलाड़ियों की बेरहम हत्या से इजरायल आग बबूला था. संसद में सारे दलों की बैठक बुलाई गई. प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने भर्राई आवाज में आतंकवाद के खिलाफ ‘युद्ध’ का ऐलान किया. संसद में मौजूद हर एक शख़्स ने उन्हें समर्थन दिया. इसके बाद आतंकवादियों से बदले के लिए एक खुफिया मिशन लॉन्च किया गया. जिसका नाम रखा गया था ‘रैथ ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का कोप.

इजरायली गवर्नमेंट ने मोसाद को पूरी छूट दे दी और टारगेट दिया कि आतंकवादी दुनिया में चाहे जहां छिपे हों, जितने पैसा खर्च करने पड़ें, उन्हें ठिकाने लगाना ही है. इस खुफिया कैंपेन का इंचार्ज माइक हरारी को बनाया गया. इसके बाद ‘असली’ मोसाद का जन्म हुआ. 16 अक्टूबर 1972 को पहले टार्गेट को खत्म किया. इसके हात अगले कुछ सालों तक मोसाद ने यूरोप से लेकर मिडिल ईस्ट के अलग-अलग देश में छिपे आतंकवादियों को चुन चुनकर ठिकाने लगाया.

 

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