वास्तुशास्त्र प्रकृति और ऊर्जा के नियमों पर आधारित भारतीय संस्कृति का एक प्राचीन विज्ञान है, जिसे अधिकांश हिंदू धर्म में लोग घर बनाते या घर में चीजें व्यवस्थित करते समय ध्यान में रखा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक और उपयोगिता पूर्ण शक्तियों का संचार और संतुलन सुनिश्चित करना है. यह शास्त्र मानता है कि प्राकृतिक ऊर्जा के सही तरीके से इस्तेमाल से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है.
वास्तु शास्त्र की मान्यता
वास्तु शास्त्र मानता है कि प्रत्येक दिशा में विशेष ऊर्जा है, और यदि घर या कार्यालय को सही दिशा में निर्माण किया जाए, तो यह सकारात्मक ऊर्जा का निरंतर प्रवाह होता है, जो स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति में वृद्धि करता है. वास्तु शास्त्र द्वारा तय किए गए सिद्धांतों का पालन करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है.
वास्तु दोष
वास्तु शास्त्र के अनुसार छोटी सी गलती भी लोगों पर भारी पड़ सकता है, जिससे वास्तु दोष होता है. वास्तु दोष से मनुष्य के जीवन में विपरीत परिणाम देखे जा सकते हैं, जो घर के सुख-शांति, धन और मानसिक और शारीरिक स्वास्थय पर भी बुरा असर पड़ता है. जब तक किसी व्यक्ति की ग्रह दशा अच्छी रहती है, तब तक वास्तु दोष का प्रभाव कम दिखाई देता है, परन्तु जब ग्रह दशा कमजोर होती है, तो वास्तु दोष के प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं.
वास्तु शास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण नियम
मुख्य द्वार का सही दिशा होना चाहिए.
मुख्य द्वार पर शुभ चिन्ह जैसे त्रिषक्ति चिन्ह आदि लगाना चाहिए.
नए मकान में प्रवेश करते समय शास्त्रोक्त विधियों का पालन करना चाहिए.
बेडरूम में देवी-देवताओं का चित्र या मूर्ति नहीं रखना चाहिए.
दक्षिणावर्त शंख और पारद शिवलिंग जैसी वास्तुशास्त्रीय वस्त्रेण्या घर में सुख-शांति लाती हैं.
घर में झाड़ू का सम्मान करना और उसे सही तरीके से रखना चाहिए.
भवन में द्वारों की संख्या सम और उत्तर तथा पूर्व दिशा को खुला छोड़ना श्रेष्ठ माना जाता है.
रसोईघर में समान रखने की सही दिशा होना चाहिए.
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