बीजेपी ने यूपी की सभी 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है. हालांकि, पार्टी को अब जगह-जगह विरोध का सामना करने पड़ा रहा है. खासकर पश्चिमी यूपी में जहां पहले चरण में वोटिंग होनी है.
असल न्यूज़: लोकसभा चुनाव में अब बेहद कम समय बचा है. ऐसे में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा झटका लगा है. यूपी की कुछ प्रमुख जातियां खुले तौर पर बीजेपी का विरोध कर रही है और अपनी असहमति दिखा रही हैं. इतना ही नहीं वे अपने समुदायों को लोगों से बीजेपी को वोट ने करने का आह्वान कर रही हैं. इनमें राजपूत, त्यागी और सैनी समुदाय सबसे अहम हैं.
गाजियाबाद में जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह की जगह अतुल कुमार गर्ग को उम्मीदवार बनाए जाने से राजपूत समाज बीजेपी के फैसले से नाराज है और पार्टी का विरोध कर रहा है. बीते 7 अप्रैल को राजपूतों ने सहारनपुर में एक विशाल महापंचायत की और बीजेपी का विरोध किया. इसी तरह त्यागी और सैनी समाज भी बीजेपी के खिलाफ पंचायतें कर रहा है. अगर इन जातियों का वोट जातिगत आधार पर विभाजित होता है तो इससे बीजेपी को बड़ा नुकसान हो सकता है.
सहारनपुर में बीजेपी को हो सकती है दिक्कत
मुस्लिम बहुल सहारनपुर में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने मुस्लिम समुदाय के माजिद अली को मैदान में उतारा है. वहीं, विपक्षी इंडिया गुट ने इमरान मसूद को टिकट दिया है, जो हाल ही में असंतुष्ट राजपूत समुदाय के साथ बैठकें कर रहे हैं और उन्हें लुभाने की कोशिश में जुटे हैं. वहीं बीजेपी ने यहां ब्राह्मण समुदाय के राघव लखनपाल के टिकट दिया है.
मुजफ्फरनगर में बीजेपी का विरोध
बीजेपी ने मुजफ्फरनगर से एक बार फिर संजीव बलियान को टिकट दिया है, जिन्हें लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है. यहां त्यागी, राजपूत, सैनी और कश्यप समुदाय के नेताओं का कहना है कि अच्छी खासी आबादी होने के बावजूद उन्हें बीजेपी से चुनाव टिकट नहीं मिल रहा है.
कैराना में भी फंसा पेच
कैराना में बीजेपी ने प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है, जो गुर्जर समुदाय से आते हैं. वहीं, पश्चिमी यूपी के कुछ हिस्सों में अच्छी खासी आबादी रखने वाले सैनी इस सीट से टिकट की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा कश्यप, जाट और राजपूत समुदाय भी यहां से अपने समुदाय का प्रतिनिधित्व चाहता है.
मेरठ में जातिगत राजनीति
मेरठ लोकसभा सीट से बीजेपी ने एक्टर अरुण गोविल को मैदान में उतारा है, जो खत्री/पंजाबी समुदाय से आते हैं. यहां मौजूदा सांसद का टिकट कटते ही जाति-आधारित राजनीति तेज हो गई और विपक्षी दल अन्य समुदाय के वोटर्स को लुभाने में लग गए हैं.