Sunday, September 8, 2024
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शीतला अष्टमी 2024: जानिए तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और महत्व

असल न्यूज़: भारतीय परंपराओं में शीतला अष्टमी का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। इस त्योहार को मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। इसके अलावा भी देश के कई हिस्सों में इस त्योहार को मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को बसोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा करने से चिकन पॉक्स, स्माल पॉक्स, मीजिल्स सहित कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा शीतला माता की सच्चे मन से आराधना करने से मनुष्य को रोगों और कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। शीतला अष्टमी के दिन माता रानी की पूजा करने से क्या-क्या लाभ मिलता है, और इस पूजा को कैसे संपन्न कराया जाता है, आइए जानते हैं…

शीतला अष्टमी का महत्व
शीतला माता की पूजा को बसोड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पूजा होली के बाद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। आमतौर पर यह होली के आठ दिनों के बाद पड़ती है, लेकिन कई लोग इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को मनाते हैं। बासौदा रिवाज के अनुसार इस दिन खाना पकाने के लिए आग नहीं जलाते हैं। शीतला अष्टमी के दिन एक दिन पहले यानी सप्तमी के दिन ही खाना बनाते हैं और बासी भोजन का सेवन करते हैं। गुजरात में, कृष्ण जन्माष्टमी से ठीक एक दिन पहले बसोड़ा जैसा ही अनुष्ठान मनाया जाता है और इसे शीतला सतम के नाम से जाना जाता है। शीतला सातम भी देवी शीतला को समर्पित है और शीतला सतम के दिन कोई भी ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है।

शीतला अष्टमी तिथि और मुहूर्त
शीतला अष्टमी 2024 मंगलवार, 2 अप्रैल 2024
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त प्रातः 06:19 बजे से सायं 06:32 बजे तक
अवधि 12 घंटे 13 मिनट

शीतला सप्तमी सोमवार, 1 अप्रैल 2024
अष्टमी तिथि प्रारम्भ 01 अप्रैल 2024 को रात्रि 09:09 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त 02 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:08 बजे

कैसे करें माता शीतला की पूजा
माता शीतला की आराधना करने वाले यानि शीतला अष्टमी के दिन उपासक को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और नित्क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए। जहां तक हो सके पानी में गंगा जल मिलाकर ही स्नान करें। यदि गंगाजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, तो शुद्ध जल से स्नान करें। इसके बाद साफ सुथरे नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद पूजा करने के लिए दो थालियां सजाएं। एक थाली में दही, रोटी, नमक पारे, पुआ, मठरी, बाजरा और सतमी के दिन बने मीठे चावल रखें। वहीं दूसरी थाली में आटे से बना दीपक रखें। रोली, वस्त्र अक्षत, सिक्का, मेहंदी रखें और ठंडे पानी से भरा लोटा रखें। घर के मंदिर में शीतला माता की पूजा करके बिना दीपक जलाकर रख दें और थाली में रखा भोग चढ़ाए। इसके अलावा नीम के पेड़ पर जल चढ़ाएं।

माता शीतला को क्यों चढ़ता है बासी भोग?
शीतला माता की पूजा के दौरान बासी भोग लगाया जाता है। इसका कारण यह है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। इसीलिए एक दिन पहले ही भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है और दूसरे दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर शीतला माता की पूजा करती है। इसके बाद मां को बासी भोजन यानी शीतला सप्तमी के दिन बनाए भोजन का भोग लगाया जाता है और घर के सभी सदस्य भी बासी भोजन ही खाते हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि शीतला माता की पूजा के दिन ताजे खाने का सेवन और गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष
मां दुर्गा के अनेक रूपों में से एक है शीतला माता। उनकी आराधना के दिन शीतला अष्टमी को बसौड़ा भी कहा जाता है। माता शीतला को आरोग्य और शीतलता की प्रदाता माना जाता है। माता शीतला की पूजा करने से सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। माता शीतला अपने अंदर छिपे रोग रूपी असुर का नाश करती है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त माता शीतला की सच्चे मन से और पूरे विधि-विधान से उपासना करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और सारे रोगों का निवारण मिल जाता है।

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