असल न्यूज़: दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम ने अंतर्राष्ट्रीय किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने एक नामी महिला डॉक्टर समेत सात आरोपितों को गिरफ्तार किया है। पकड़ी गई महिला डॉक्टर एक बड़े अस्पताल में काम करती है। आरोपी डोनर को साढ़े तीन लाख रुपये देते थे और प्राप्तकर्ता से 20 से 22 लाख रुपये लेते थे। बताया जा रहा है कि किडनी रैकेट तीन वर्ष से ज्यादा समय से चल रहा था। चलिए आपको हम बताते हैं कि यह पूरा गिरोह किस तरह से काम करता था।
किडनी का गैरकानूनी धंधा बांग्लादेश व भारत में बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। गिरोह चार साल में करीब 500 लोगों की किडनी गैरकानूनी तरीके से प्रत्यारोपित कर चुके हैं। इसका खुलासा किडनी रैकेट के पर्दाफाश के बाद हुआ। किडनी बदलने के दौरान चार लोगों की जान भी जा चुकी है। किडनी प्रत्यारोपण अधिकतर नोएडा के यथार्थ व अपोलो में अस्पताल हुए हैं। दिल्ली के एक बड़े प्रतिष्ठित अस्पताल में केवल टेस्ट व जांच होती थीं।
अपराध शाखा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि गिरोह बांग्लादेश में ज्यादा सक्रिय था। गिरोह के सदस्य गरीब लोगों को भारत में नौकरी दिलाने के बहाने दिल्ली ले आते थे। भारत में उन्हें जसोला में किराए पर मकान लेकर या फिर गेस्ट हाउस में रखते थे। इसके बाद ये उन लोगों का पासपोर्ट जब्त कर लेते थे। इसके बाद गरीब बांग्लादेशियों पर किडनी डोनेट करने का दबाव बनाते थे। उनसे कहा जाता था कि नौकरी तभी मिलेगी जब आप किडनी बेचोगे। इसकी एवज में उन्हें पैसे का भी लालच दिया जाता था।
मजबूरन पीड़ित किडनी देने को तैयार हो जाता था। दूसरी तरफ ये बांग्लादेशियों के डायलिसिस अस्पतालों पर नजर रखते थे। वहां जरूरतमंदों से संपर्क साधते थे। ये किडनी प्राप्तकर्ता को भारत ले आते थे।
मकान में ही नकली कागजात तैयार किए जाते थे
गिरोह के सदस्य किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता के नकली कागजात किराये के मकान में तैयार करते थे। ये किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता के बीच आपस में रिश्तेदार होने के कागजात बनाते थे। कागजात तैयार होने के बाद किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता के दिल्ली के प्रतिष्ठित प्राइवेट अस्पताल में टेस्ट होते थे। टेस्ट होने के बाद ये नोएडा के अस्पतालों में प्रत्यारोपण कराते थे। किडनी प्रत्यारोपण के करीब-करीब सभी ऑपरेशन इन्हीं दोनों अस्पतालों में हुए हैं।
डॉ. डी विजय कुमारी ने किए हैं सभी ऑपरेशन
अपराध शाखा के पुलिस अधिकारियों के अनुसार नोएडा के इन दोनों की अस्पतालों में किडनी प्रत्यारोपण डॉ. डी विजया कुमारी ने किए हैं। वह अपने सहायक विक्रम के जरिए ही इस गिरोह के संपर्क में आई थीं। वह पिछले चार सालों से इस गिरोह के लिए काम कर रहे हैं।
पैसे का खेल ऐसे चलता था
4.5 लाख टका गिरोह के सदस्य किडनी देने वाले को देते थे।
20 से 22 लाख प्राप्तकर्ता से लेते थे।
4 लाख डॉ. डी विजया कुमारी की पूरी टीम को मिलते थे।
1 लाख डॉ. डी विजया कुमारी अपने हिस्से के रूप में लेती थी।
4 लाख उस अस्पताल को दिए जाते थे जिनमें किडनी बदली जाती थी।
10 लाख गिरोह के लोग अपने पास रख लेते थे।
मरीज से खुद पैसे लेती थी डॉ. विजया
दिल्ली के एक नामचीन निजी अस्पताल में कंस्लटेंट रही डॉ. डी विजया कुमारी का पैसे लेने का तरीका भी अलग था। पुलिस ने उसके दो बैंक खातों का पता लगा है। पीएनबी के खाते में 10 लाख रुपये से ज्यादा और दूसरे खाते में दो लाख रुपये से ज्यादा मिले हैं। दिल्ली पुलिस डॉ. डी विजया कुमारी के दोनों बैंक खातों की पिछले कई सालों की डिटेल खंगाल रही है।
पुलिस अधिकारियों के अनुसार नोएडा के एक अस्पताल से उसके सहायक विक्रम के बैंक खाते में पैसे आते थे। डॉक्टर के बैंक खाते में 90 हजार से एक लाख रुपये आते थे, जबकि नोएडा के ही दूसरे अस्पताल में वह मरीज से खुद पैसे लेती थी। इसके बाद वह सभी को पैसे बांटती थी। वह अपनी पूरी टीम के साढ़े तीन लाख से चार लाख रुपये रख लेती थी। अस्पताल को एक किडनी प्रत्यारोपण का चार लाख रुपये दिया जाता था।
आरोपी बांग्लादेश के अस्पतालों पर रखते थे नजर
आरोपियों ने पूछताछ के दौरान बताया कि गिरोह के सदस्य बांग्लादेश में डायलिसिस केंद्रों पर जाकर किडनी की बीमारी से पीडि़तों को निशाना बनाते थे। ये किडनी डोनर भी बांग्लादेश में ही ढूंढते थे। डोनर को भारत लाया जाता था और फिर पासपोर्ट जब्त कर उन्हें किडनी देने के लिए मजबूर किया जाता था। इसके बाद आरोपी रसेल और इफ्ति अपने सहयोगियों मोहम्मद सुमन मियां, मोहम्मद रोकन उर्फ राहुल सरकार और रतेश पाल के माध्यम से प्राप्तकर्ताओं/डोनर के बीच संबंध दिखाने के लिए जाली दस्तावेज तैयार करते थे। जाली दस्तावेज के आधार पर अस्पतालों से प्रारंभिक चिकित्सा जांच कराते थे। इसके बाद दिल्ली व नोएडा के अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट करवाते थे।
जांच के दौरान यह पाया गया कि डॉ. डी. विजया राजकुमारी का निजी सहायक विक्रम सिंह रोगियों की फाइलें तैयार करने में सहायता करता थे और रोगी और डोनर का हलफनामा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। विक्रम सिंह आरोपियों से प्रति मरीज 20000 लेता था। रसेल ने अपने एक सहयोगी के रूप में मोहम्मद शारिक का नाम भी बताया। मोहम्मद शारिक डॉ. डी. विजया राजकुमारी से मरीजों का अपॉइंटमेंट लेता था और पैथोलॉजिकल टेस्ट करवाता था और डॉक्टर की टीम से संपर्क करता था। मोहम्मद शारिक प्रति मरीज 5000 से 60000 लेता था। दो आरोपी व्यक्तियों विक्रम सिंह और मोहम्मद शारिक को 23 जून को गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी आरोपी
रसेल- मूलरूप से बांग्लादेश निवासी रसेल 2019 में भारत आया और एक बांग्लादेशी मरीज को अपनी किडनी दान की थी। किडनी देने के बाद उसने यह रैकेट शुरू किया। वह इस रैकेट का किंगपिन है और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय करता है। उसने बांग्लादेश के संभावित किडनी दाताओं और किडनी प्राप्तकर्ताओं के बीच संपर्क स्थापित किया। वह बांग्लादेश में रहने वाले इफ्ति नामक व्यक्ति से डोनर मंगवाता था। प्रत्यारोपण पूरा होने पर उसे आमतौर पर इस कंपनी से 20-25 फीसदी तक कमीशन मिलता है।
मोहम्मद सुमन मियां- मूलरूप से बांग्लादेश निवासी आरोपी मोहम्मद सुमन, आरोपी रसेल का साला है और वर्ष 2024 में भारत आया था। तब से वह रसेल के साथ उसकी अवैध गतिविधि में शामिल है। वह किडनी रोगियों की पैथोलॉजिकल जांच का काम देखता है। रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए 20,000 का भुगतान करता था।
मोहम्मद रोकोन उर्फ राहुल सरकार उर्फ बिजय मंडल- बांग्लादेश निवासी मोहम्मद रसेल के निर्देश पर किडनी दानकर्ताओं और किडनी प्राप्तकर्ताओं के फर्जी दस्तावेज तैयार करता था। रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए 30,000 का भुगतान करता था। उसने 2019 में एक बांग्लादेशी नागरिक को अपनी किडनी भी दान की थी।
रतेश पाल – त्रिपुरा निवासी रतेश को रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए 20,000 का भुगतान करता था।
शरीक- वह बीएससी मेडिकल लैब टेक्नीशियन तक पढ़ा है और यूपी का रहने वाला है। वह मरीजों और दाताओं की प्रत्यारोपण फाइलों की प्रोसेसिंग के संबंध में निजी सहायक विक्रम और डॉ. विजया राजकुमारी के साथ समन्वय करता था।
विक्रम- उत्तराखंड का रहने वाला का रहने वाला विक्रम वर्तमान में वह फरीदाबाद, हरियाणा में रहता है। आरोपी डॉ. डी. विजया राजकुमारी का सहायक है।
डॉ. विजया राजकुमारी किडनी सर्जन और दो अस्पतालों में विजिटिंग कंसल्टेंट हैं। फिलहाल उसे अपोलो अस्पताल से निलंबित किया हुआ है। तीन आरोपी मरीज हैं। इस कारण उन्हें गिरफ्तार करने की बजाय बाउन-डाउन किया गया है।
बरामद सामान
अलग-अलग प्रमुखों यानी डॉक्टर, नोटरी पब्लिक, एडवोकेट आदि की 23 मोहरें, किडनी मरीजों और दाताओं की छह जाली फाइलें, अस्पतालों के जाली दस्तावेज, जाली आधार कार्ड, जाली स्टिकर, खाली स्टाम्प पेपर, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, दो लैपटॉप जिसमें आपत्तिजनक डेटा है, आठ मोबाइल फोन और 1800 यूएस डॉलर बरामद किए गए हैं।